चढती जवानी सौप दी- XXX Story

Hot desi sex
XXX Story in Hindi

बचपन से ही घर में आए दिन मां पापा के झगड़े देखकर मैं परेशान हो गई थी मेरे शराबी बाप ने मुझे कभी अपनी बेटी समझा ही नहीं मेरी मां की जिंदगी तो उन्होंने पूरी तरीके से खराब कर ही दी थी लेकिन उसके बावजूद भी मां चाहती थी कि मैं एक अच्छे स्कूल में पढूं और मेरी जिंदगी संवर जाए।

मां नहीं चाहती थी कि उनकी तरह ही मेरी जिंदगी भी बर्बाद हो जाए इसीलिए मां ने मुझे एक अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवाने के बारे में सोच लिया था। हालांकि वह लोगो के घर में साफ सफाई का काम किया करती थी लेकिन उसके बावजूद भी उन्होंने मुझे पढ़ने के लिए कहा।

मेरा एक अच्छे स्कूल में दाखिला तो नहीं हो पाया परंतु मैं सरकारी स्कूल में पढ़ाई करने लगी। मैं पढ़ाई में बचपन से ही अच्छी थी इसलिए मेरे टीचर मुझ पर बड़ा ध्यान दिया करते थे।

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समय के साथ-साथ सब कुछ बदलने लगा था परंतु मेरे पिताजी की शराब की आदत अभी तक नहीं छूटी थी हम लोग अभी भी छोटे से मकान में रहा करते थे मकान की स्थिति भी जर्जर होने लगी थी।

मां ने किसी तरीके से मेरी परवरिश तो कर दी लेकिन उन्हें यह चिंता सताती रहती कि वह जल्दी से मेरे हाथ पीले कर दें ताकि वह अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएं लेकिन मैं अपने जीवन में कुछ करना चाहती थी।

मैंने मां को कहा मां आपने जीवन भर इतनी मेहनत की है लेकिन अब तो आप आराम कर सकती हैं मां कहने लगी की बेटा यदि मैं आराम करूंगी तो कमायेगा कौन तुम्हारा शराबी बाप तो दिन भर शराब पीकर घर में ही पड़ा रहता है और तुम ही मुझे बताओ कि मैं ऐसे में क्या करूं।

मेरी उम्र भी 20 वर्ष की हो चुकी थी और मैंने कॉलेज में दाखिला ले लिया था, मैं अपनी मां की मदद कर दिया करती थी परंतु मां ने मुझे कभी भी किसी के घर साफ सफाई करने के लिए आज तक नहीं भेजा था।

मां चाहती थी कि मैं पढ़ लिख कर एक अच्छी नौकरी करूँ मां का बस यही सपना था और उस सपने को पूरा करने के लिए मैंने जी जान लगा दी। मैंने काफी मेहनत की और जब मेरा कॉलेज खत्म हुआ तो उसके बाद मैं जगह जगह नौकरी की तलाश करने लगी लेकिन मेरी राह इतनी भी आसान होने वाली नहीं थी मुझे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।

एक दिन मेरी नौकरी लगी गई जब मेरी नौकरी लगी तो मेरी मां इस बात से बड़ी खुश हुई मां कहने लगी कि बेटा मै हमेशा से ही चाहती थी कि तुम एक अच्छी जगह नौकरी करो और तुमने मेरा सपना पूरा कर दिया।

मुझे तो ऐसा लगा कि जैसे मां ने ही मेरे लिए सब कुछ किया हो आखिरकार मां ही मेरी रोल मॉडल थी यदि वह मुझे पढ़ने के लिए स्कूल में नहीं भेजती तो शायद मैं यह सब कभी कर ही नहीं पाती औरों की तरह मेरी भी शादी हो चुकी होती लेकिन मां ने मुझे हिम्मत दी और मुझे कहा कि बेटा तुम अपने जीवन में जरूर कुछ अच्छा कर पाओगी।

मैं अब एक अच्छी कंपनी में नौकरी लग चुकी थी मेरी तनख्वाह 25000 महीना थी मैं बहुत ज्यादा खुश थी क्योंकि इतने पैसे मैंने कभी आज तक एक साथ देखे भी नहीं थे मेरे लिए तो यह किसी सपने से कम नहीं था।

मुझे तो ऐसा लगा जैसे मेरा सपना सच होने जा रहा है और जब पहले महीने की तनखा मुझे हाथ में मिली तो मैं बहुत खुश हुई मैंने जिंदगी में पहली बार ही अपना बैंक अकाउंट खुलवाया था और मैं उसमें पैसे जमा करने लगी।

मैंने मां को पैसे दिए और मां को मैंने एक साड़ी ला कर दी मां बहुत खुश हुई लेकिन मेरे बूढ़े हो चुके बाप के अभी तक शराब की लत नहीं छूटी थी अब उनकी तबीयत बहुत ज्यादा खराब रहने लगी थी।

जब मैं और मां उन्हें डॉक्टर के पास ले गए तो उन्होंने साफ तौर पर मना कर दिया था। मेरे पापा ने इतनी शराब पी ली की अब उनकी तबीयत बहुत ज्यादा खराब रहने लगी थी और थोड़े ही समय बाद उनका देहांत हो गया।

हालांकि उन्होंने मां कि कभी भी मदद नहीं की लेकिन उसके बाद भी मां को उनके जाने का दुख बहुत हुआ अब घर में सिर्फ मां और मैं ही रह गए थे हम दोनों ही एक दूसरे का सहारा थे।

मां ने हमेशा अपने जीवन में संघर्ष ही किया है और मैं नहीं चाहती थी कि मां अपने जीवन में और संघर्ष करें क्योंकि मां ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया और उन्होंने बहुत सी मुसीबतें देखी थी परंतु उसके बावजूद भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी।

आखिरकार वह दिन भी नजदीक आ गया जब हम लोगों ने अपना घर बेच दिया और हम लोग एक छोटे से घर में रहने लगे मेरी मेहनत से हम लोग अब नया घर खरीद चुके थे और पुराने घर के भी थोड़े बहुत पैसे हमें मिले थे।

मां मुझे कहती कि बेटा मैं हमेशा से ही चाहती थी कि तुम एक अच्छी कंपनी में नौकरी करो मैंने मां से कहा मां यह सब तुम्हारी वजह से ही तो हो पाया है नहीं तो शायद यह कभी भी संभव नहीं हो पाता।

इसमें मां का सबसे बड़ा योगदान था कि उन्होंने हमेशा ही मेरा साथ दिया और मुझे इस बात की भी खुशी थी कि मां और मैं एक अच्छी सोसायटी में रहने लगे थे। हम लोग जिस जगह रहते थे वहां पर हमारे अच्छी जान पहचान भी होने लगी थी एक दिन मां मुझे कहने लगी कि बेटा तुम आते वक्त मेरे लिए दवाई ले आना।

मां ने मुझे पर्ची दी और कहा बेटा कल मैं डॉक्टर के पास गई थी उन्होंने मुझे कुछ दवाइयां लिख कर दी है मैं चाहती हूं कि तुम यह दवाइयां ले आना। मैंने मां से कहा ठीक है मां मैं आपके लिए दवाई ले आऊंगी मां की तबीयत भी अब खराब रहने लगी थी और मां भी काफी बूढ़ी होने लगी थी। इतने सालों में उन्होंने अपने जीवन में सिर्फ मेहनत ही तो की थी जिससे की अब समय से पहले ही उनके चेहरे पर झुर्रियां पड़ने लगी थी।

मैं मां के लिए दवाई ले आई मैंने मां को कहा अब आपको अपना ध्यान रखना चाहिए लेकिन वह मेरी बात कहां मानने वाली थी वह अपना ध्यान अभी भी नहीं रखती और हमेशा मुझे कहती कि बेटा अब मेरी उम्र हो चुकी है और मैं चाहती हूं कि तुम जल्दी से शादी कर लो।

मुझे अभी तक ऐसा कोई लड़का नहीं मिला था जिससे कि मैं शादी कर पाऊं क्योंकि मुझे लगता कि मुझे ऐसे लड़के से शादी करनी चाहिए जो कि मुझे समझ सके और जो मेरी मां की देखभाल भी कर सके क्योंकि मेरे जीवन में सिर्फ मेरी मां ही थी और मेरी मां के अलावा मेरा इस दुनिया में कोई भी तो नहीं था।

मेरी मां ने बचपन से लेकर हमेशा मेरे ऊपर आने वाली मुसीबतों को अपने ऊपर ले लिया। अब मेरी तलाश फिल्म खत्म होने लगी क्योंकि जब मेरी मुलाकात मोहन से हुई तो मोहन से मिलकर मुझे बहुत खुशी हुई। मोहन को मैंने अपने बारे में सब कुछ बता दिया था मोहन ने मुझे कहा कि सुरभि मैं तुम्हारा साथ हमेशा दूंगा।

मैंने मोहन को अपनी मां से भी मिलाया और मैं भी मोहन से मिलकर खुश थी। मैंने मां को मोहन के बारे में बता दिया था मोहन भी मां से मिलकर खुश था हम दोनों ने उस वक्त अपनी मर्यादाओं को पार कर दिया जब मोहन ने मेरे होठों को चूम लिया।

मोहन ने मेरे होंठों को चूमा तो मैं बहुत ही खुश थी उस दिन जब मैं घर आई तो मैं रात भर यही सोचती रही मेरी आंखों से नींद भी गायब थी जिस प्रकार से मोहन ने मेरे होंठों को चूमा था उससे मैं बड़ी खुश हो गई थी और मोहन के साथ मै दोबारा से चुंबन करना चाहती थी।

एक दिन मोहन ने कहा हम लोग कहीं चलते हैं हम दोनों ने एक दिन अकेले में रहने के बारे में सोच लिया मैंने भी अपनी रजामंदी दे दी थी क्योंकि मैं मोहन को पसंद करती थी इसलिए मुझे भी इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी और ना ही मोहन को इस बात से कोई आपत्ति थी।

मोहन बहुत ही ज्यादा खुश था हम दोनों एक होटल में रुके हुए थे जिस होटल में हम लोग रुके थे उस होटल में सारी व्यवस्थाएं बड़ी अच्छे से थी हम दोनों बंद कमरे में एक दूसरे की बाहों में थे जब मोहन मुझे अपनी बाहों में ले रहे थे तो मैंने भी मोहन के होठों को चूम लिया।

हम दोनों एक दूसरे के बदन से लिपट कर एक दूसरे के होठों को चूमने लगे मेरे होठों से खून निकल आया था और मोहन ने अपने लंड को बाहर निकाला तो मैंने मोहन के लंड को अपने मुंह के अंदर समा लिया।

जब मैंने मोहन के लंड को अपने मुंह में लेकर सकिंग करना शुरू किया उससे मोहन बड़े ही ज्यादा उत्तेजित हो गए थे वह मुझे कहने लगे मैं तुम्हारी चूत मारने के लिए तैयार हूं।

मोहन ने मेरी चूत के अंदर अपने लंड को घुसाया जैसे ही मोहन का लंड मेरी चूत के अंदर प्रवेश हुआ तो मैं चिल्ला उठी मोहन का लंड मेरी चूत के अंदर बाहर होता तो मेरी चूत से खून बाहर निकल आता मोहन मुझे कहते तुम्हारी चूत से तो बहुत ज्यादा खून निकल रहा है। मैंने मोहन को कहा अगर चूत से बहुत खून निकल रहा है निकलने दो लेकिन तुम ऐसे ही मुझे धक्के मारते रहो।

मुझे भी मज़ा आने लगा था मैं अपने पैरों को खोलने लगी मोहन के धक्कों में भी तेजी आने लगी थी जिस प्रकार से मोहन मेरी चूत के अंदर बाहर अपने लंड को करते मैं बहुत ज्यादा उत्तेजित हो जाती और मोहन को मैं कहती तुम आज मेरी चूत का भोसड़ा बना दो।

मेरी चूत से अभी तक खून बाहर निकल रहा था मैं मोहन के साथ पूरी तरीके से खुश थी जिस प्रकार से मोहन मेरे साथ सेक्स कर रहा था उससे मोहन के चेहरे पर भी खुशी साफ नजर आ रही थी मोहन का वीर्य गिर चुका था।

मोहन ने मुझे घोड़ी बना दिया मेरी चूत से अभी तक मोहन का वीर्य बाहर की तरफ को टपक रहा था लेकिन मोहन ने अपने लंड को मेरी चूत के अंदर घुसा दिया मोहन का लंड मेरी चूत के अंदर जाते ही मेरी चूत में दर्द होने लगा मेरे मुंह से सिसकियां निकलने लगी मैं अपनी मादक आवाज मे मोहन को कहती थोड़ा धीरे से धक्का मारो लेकिन मोहन कहां मानने वाले थे।

मोहन ने लगातार तेज गति से मुझे धक्के मारे मोहन ने जिस प्रकार से अपनी गति पकड़ रखी थी उससे तो मुझे लग रहा था मैं ज्यादा देर तक बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगी मैं झड़ने वाली थी चूत से बहुत ज्यादा पानी बाहर की तरफ निकलता।

मोहन ने अपने वीर्य को चूत के अंदर गिरा दिया और मुझे कहा आज तो मुझे बड़ा मजा आ गया रात भर हम दोनों ने जमकर सेक्स का आनंद लिया मुझे मोहन के साथ सेक्स करने में कोई भी आपत्ति नहीं थी मैंने अपनी जवानी मोहन को सौंप दी थी।

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