भाभीजी को मुफ्त का राशन- Hot Bhabhi ki Chudai
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नमस्ते दोस्तो। मेरा नाम श्रेयांश (उम्र २३) है। मैं आप लोगों को इस कहानी के माद्यम से मेरे साथ दो दिन पहले हुई घटना के बारें में बताने वाला हूँ। मेरे पिताजी की किराने की दुकान है। मैं अपने पिताजी के साथ मिलकर दुकान संभालता हूँ।
सिर्फ़ दोपहर को पिताजी कुछ घंटों के लिए घर जाते हैं। उन्हें दोपहर के समय मेरी माँ की चुदाई करनी होती है, आराम करना होता है, हिसाब-किताब देखना पड़ता है। दोपहर को मैं अपना धंदा शुरू कर देता हूँ।
दुपहर को मैं जब दुकान में अकेला रहता हूँ, तब मैं दुकान में आनेवाली औरतें, लड़कियों के साथ थोड़ी मस्ती करता हूँ। उन्हें दुकान में आते देख, मैं अपने लौड़े को हिलाने लगता हूँ।
मुझे अपने लौड़े को हिलाते देख, कुछ औरतें और लड़कियाँ शर्मा जाती है, तो कुछ गुस्से से लाल होकर वापस अपने घर चली जाती है।
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दुकान में आनेवाली औरतें, लड़कियाँ जो कोई भी मुझे देखकर हस्ती है या शर्मा कर मेरे सामने खड़े रहती है, उनको मैं थोड़ा डिस्काउंट दे देता हूँ। मेरा मकसद तो वैसे कुछ और है।
मैं चाहता हूँ कि कोई भी औरत या लड़की उत्तेजित होकर मेरे साथ चुदाई करें। उस औरत या लड़की को तो मैं सामान मुफ्त में भी देने तैयार हूँ। अब तक तो मुझे कोई ऐसी नहीं मिली थी।
एक दिन, मैं दोपहर को रोज़ की तरह दुकान मैं बैठकर किसी देसी माल की तलाश कर रहा था। मैंने कुछ दिनों से मुठ नहीं मारी थी, इसलिए अपना मोबाइल फ़ोन निकालकर मैं पोर्न वीडियोस देखने लग गया।
मेरा ध्यान अपने मोबाइल पर होने की वजह से मैंने दुकान के सामने खड़ी बुढ़िया को नहीं देखा।
[बुढ़िया:] वाह रे छोकरे, तू भी अपने बाप के रास्ते पर चलना सिख गया।
मैं बुढ़िया को देखकर चौंक गया। अपने लौड़े को अपनी पैंट के अंदर करके सीधा खड़ा हो गया। वह बुढ़िया हमारे पड़ोस में रहती है। वह मेरे घर से मुझे टिफ़िन देने आई थी।
रोज़ तो पिताजी लेकर आते है। उस दिन उन्हें देर हो गई थी इसलिए उस बुढ़िया के हाथों मेरी माँ ने टिफ़िन भिजवाया था।
[मैं:] इसका क्या मतलब हुआ? मेरे पिताजी भी दुकान पर बैठकर मुठ मारते है क्या?
[बुढ़िया:] वह क्यों मुठ मारेगा भला। उसका लौड़ा हिलाने तो मेरी बहु आती है। कल महीने भर का सामान भराकर जायेगी और तेरा बाप उसकी जमकर चुदाई करेगा। मेरा नालायक बेटा अपनी बीवी को दूसरों से चुदवाकर अपना घर चलाता जो है।
बुढ़िया के जाने के बाद मैंने उसकी बातों पर विचार किया। हर महीने के आखिरी कुछ दिनों के लिए पिताजी मुझे दुकान आने से मना करते है।
वह कहते हैं कि उन्हें अपने दुकान का हिसाब-किताब देखना पड़ता है और लोगों से मिलकर आगे की सोचनी पड़ती है। बड़े लोगों की बातों में मेरा काम नहीं होने के कारण वह मुझे दुकान कुछ दिनों के लिए आने नहीं देते है।
मुझे लगा कि शायद इसी समय वह हमारे पड़ोस की भाभी की चुदाई करते होंगे। मैंने ठान लिया कि पिताजी को पड़ोसवाली भाभी के साथ रंगरेलिया मनाते पकडूँगा।
दूसरे दिन पिताजी ने मुझे दुकान आने से मना कर दिया। मैंने पड़ोसवाली भाभी पर कड़ी नज़र रखी हुई थी। मुझे इतना मालुम था कि अगर भाभी अपने घर से निकलेगी, तो ही वह हमारे दुकान जाकर पिताजी से चुदेगी।
दो दिनों तक मैंने पड़ोस की छमिया जैसी दिखने वाली भाभी पर नज़र रखी। दो दिन कुछ भी ऐसा नहीं हुआ जैसा उस बुढ़िया ने कहा था। मुझे लगा कि उस बुढ़िया ने मुझे चूतिया बनाया।
लेकिन अगले दिन तो भाभी अपने घर से निकली। मेरे पिताजी ने मुझे उस दिन भी दुकान आने से मना किया था।
मैंने भाभी का पीछा किया। भाभी के हाथ में एक चिट्ठी थी। शायद उसमे पूरे महीने भर के राशन की सूची थी। भाभी एकदम टिप-टॉप दिखकर घर से निकली थी। उसने लाल साड़ी पहनी थी और भारी शृंगार किया था।
रास्ते में उसकी मटकती गांड को देखकर काफ़ी मर्दों ने अपना हाथ अपने लौड़े पर रखकर सहलाया।
भाभी हमारे दुकान की तरफ ही जा रही थी। भाभी के दुकान के अंदर कदम रखते ही मैं दौड़ता हुआ दुकान के पिछवाड़े पहुँच गया।
पिताजी ने दुकान की शटर को थोड़ा निचे कर दिया और वह भाभी को लेकर अंदरवाले कमरे में आए। इस कमरे में निचे रजाई बिछाई हुई है ताकि दोपहर को थोड़ा आराम कर सकें। पिताजी और भाभी दोनों रजाई पर बैठ गए।
[पिताजी:] बोल मेरी जानेमन, इस बार कितने का लूटकर जाएगी मुझे?
[भाभी:] तुम क्या कम लुटते हो मुझको। मेरी लाल चूत का तुमने काला भोसड़ा बना दिया है। अब तो इसे मेरा पति भी नहीं सूंघता।
पिताजी ने भाभी की टाँगे फैलाई और उसकी साड़ी को उठाया। भाभी की सफ़ेद रंग की पैंटी उसके काले और मोटे जाघों के बिच क़यामत लग रही थी।
भाभी की पैंटी को निकालकर पिताजी अपना मुँह उसकी चूत की ओर ले गए। अपनी ज़ुबान से वह भाभी की काली चूत को चाटने लगे।
भाभी सिसकियाँ भरने लगी और उसने पिताजी के बालों को पकड़ लिया। कुछ देर भाभी की चूत चाटने के बाद पिताजी रजाई पर लेट गए।
[पिताजी:] आजा मेरी रांड, बैठजा मेरे मुँह पर। आज तो तेरी गांड और चूत का ऐसा हाल करूँगा कि तेरा पति तुझे चोदना छोड़ देगा।
भाभी ने खड़े होकर अपनी साडी उठाई और अपनी काली मोटी गांड को पिताजी के मुँह पर रखकर बैठ गई। पिताजी ने दोनों हाथों से भाभी की काली चूतड़ों को पकड़ा और उन्हें फैलाकर अपनी ज़ुबान उसकी गांड की छेद के अंदर घुसा दि।
भाभी ने पिताजी के खड़े लौड़े को पैंट के अंदर से निकाला और उसे चूसने लगी। भाभी की गांड की छेद गीली होकर चमकने लगी थी।
दोनों ही अब काफी मस्त और गरम हो चुके थे। पिताजी ने भाभी को रजाई पर घोड़ी बनाया और उसकी साड़ी को ऊपर किया। उसकी काली चूत पर थूक लगाकर पिताजी ने अपना लौड़ा उसकी चूत में घुसा दिया।
भाभी की गांड को दबोचकर पिताजी ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगे। भाभी की काली चूत बहुत ही ढ़ीली थी। पिताजी ने भाभी की गांड की छेद में अपनी पूरी हथेली घुसा दी। उसके कारण भाभी अपनी गांड हिलाने लगी।
भाभी की चीखें निकलते ही पिताजी ने अपनी दूसरी हथेली को उसके मुँह में डाल दिया। गांड की छेद में घुसी हथेली को पिताजी ने अंदर-बाहर किया। फिर कुछ देर बाद अपने मुँह में डालकर उसे चाटा।
पिताजी ने भाभी का ब्लाउज उतारकर उसके स्तनों को बाहर निकाला। भाभी के काले स्तन काफी बड़े और लंबे थे।
जिस तरह से पिताजी उसके स्तनों को खींचकर, दबाकर, निप्पल खींचकर भाभी की चुदाई कर रहे थे। उससे लगता था कि उनके स्तनों का वैसा हाल ऐसी कई चुदाई के कारण ही हुई है।
पिताजी ने अब भाभी को अपने ऊपर चढ़ा दिया। भाभी ने पिताजी के लौड़े को अपनी गांड की छेद में घुसा दिया और उसपर उछलने लगी। पिताजी ने भाभी के स्तनों को पकड़कर उसे अपनी तरफ खींचना शुरू किया।
दर्द के मारे भाभी जब चिल्लाई, तब पिताजी ने उसे थप्पड़ लगा दिया। एक-दो थप्पड़ और लगाकर भाभी को अपने पास खींचा और उसके होठों को चूसना शुरू किया।
थोड़ी देर बाद पिताजी ने अपने लौड़े को ज़ोर-ज़ोर से भाभी की गांड की छेद में घुसाना शुरू कर दिया। कुछ देर तेज़ी से धक्के मारकर पिताजी ने अपना माल भाभी के गांड की छेद में निकाल दिया।
भाभी पलटकर पिताजी के मुँह के ऊपर बैठ गई। ज़ोर लगाकर अपनी गांड के अंदर से भाभी ने लौड़े का पानी निकालकर पिताजी के मुँह के ऊपर छोड़ दिया। फिर पिताजी के मुँह से सारा माल को चाटने लगी।
[पिताजी:] कल फिर से आ तू जानेमन। आज मेरा मन भरा नहीं।
[भाभी:] आ जाऊँगी। तुम बस अपना लौड़ा तैयार रखो और मेरा सामान भी।
यह थी मेरी कहानी। अपने पिताजी से सीखकर मैंने भी एक-दो औरतों को मुफ्त में राशन देना शुरू किया है। उम्मीद करता हूँ कि मुझे भी उसका हिसाब चूत मारकर मिल जायेगा।
रही बात उस भाभी की। उसे एड्स की बिमारी हो गई। उसका पति, मेरे पिताजी, और गाँव के दस-बिस लोगों को यह बात सुनकर बहुत बड़ा सदमा लग गया।
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