दोस्त की माँ की गुलाबी चूत- Antarvasna Sex Story
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ये कहानी यूपी स्टेट के बरेली सिटी से आये एक लड़के की है। जोकि जॉब के लिए दिल्ली आया था और दिल्ली और गुरगाँव के बॉर्डर पर रहने लगा और उसको बहादुरगढ़ की एक फैक्ट्री में जॉब मिल गयी थी।
२ साल काम करने के बाद, वो अपने भाई और पैरेंट को भी वहां ले आया। उसकी फॅमिली में डैड, माँ और उसके दो छोटे भाई थे। अब आगे स्टोरी (इस कहानी में उसे हुए दोनों लडको के नाम ट्रू है)।
आगे ये हुआ, कि उसने एक गुज्जर की बिल्डिंग में सबसे ऊपर का फ्लोर किराये पर लिया। सही पेसो में एक सेपरेट पोर्शन मिल जाने पर, उसकी पूरी फॅमिली वहीँ पर रहने लगी। तो अब डिटेल्स में।। लड़के का नाम २० साल (कहानी जिसके आसपास घुमती है)।
चूत हमारी देसी, चोद गया पडोसी- Antarvasna Sex Story
उसका छोटा भाई १६ साल और सबसे छोटा १४ साल। उसके बाप की ऐज ५१ और उसकी माँ की ऐज ४२ (कहानी की बेबस पर लीड एक्ट्रेस)। ये सब वहां रहने लगे और अशोक एक फैक्ट्री में जॉब करता। मोर्निंग में ७ बजे जाता और शाम को ६ से ७ बजे ही वापस आ पाता था।
उसकी माँ घर पर रहती थी और सारे काम करती थी। उन्होंने कुछ दिन में पानीपूरी (पानी के बताशे) बेचने का काम भी शुरू कर ने के बारे में सोचा। पर वहां शॉप का इंतजाम नहीं हुआ। तो उसने लैंडलॉर्ड से बात की शॉप के लिए। तो आप सोच रहे होंगे, कि लैंडलॉर्ड ४० या ५५ साल का कोई आदमी होगा और सही भी है।
लैंडलॉर्ड की ऐज ५३ जोकि अपनी ठांठ- बांट जमीन और खेत में बिजी रहने वाला आदमी पर हमारा मेन लीड एक्टर, जोकि अपनी रेंट बिल्डिंग की केयर करना, किरायेदारो से रेंट लाना, नया किरायेदार लाना और सब कुछ देखना। जिसके पर अच्छी खासी इनकम थी बाई रेंट।
तो हमारा लीड एक्टर ऐज २३ नाम प्रदीप उर्फ़ बिट्टू साल का, गबरू जवान छोरा। अशोक ने प्रदीप से बात की जगह के लिए, तो प्रदीप ने उसको कहा, थोड़ा टाइम दे दो, वो बता देगा जगह। प्रदीप ने कुछ टाइम में एक सही जगह दिला दी,
जहाँ पर अशोक का बाप और उसका छोटा भाई पानीपूरी की शॉप लगाने लगे थे। कुछ दिन ऐसे ही बीत गए, अशोक और प्रदीप दोस्त भी हो गए। छोटा भाई स्टडी करता और अपने बड़े भाई, बाप और माँ की हेल्प भी करता।
बात विंटर से स्टार्ट होती है, सब अपने काम में बिजी होते और लाइफ अच्छी चल रही थी। फिर कुछ अजीब सा मोड़ आया कहानी में।। हीरो – हिरोईन के पास आने की दास्तान।
तो अशोक सुबह जॉब पर जाता, सबसे छोटा स्कूल और उसके बाद अशोक के माँ – बाप मिलकर पानीपूरी का इंतजाम करते। शाम के लिए फिर वो सब चले जाते और अशोक की माँ घर पर अकेली होती। जोकि आराम करती, इतनी मेहनत के बाद। उसके जाने के बाद, वो नहाती और थोड़ी देर धुप में बैठती, विंटर की वजह से।
तो जहाँ पर वो बैठती थी, वो जगह बिलकुल सीढियों से आते वक्त दिखती थी। पर कौन आ रहा है और क्या कर रहा है।। दिखाई नहीं देता था। केवल तब ही दीखता था, जब वो एकदम ऊपर आ जाता था।
सीढियों और अशोक के कमरे के बीच में थोड़ी जगह थी और उस जगह से नीचे रौशनी जाती थी और वहां पर दिवार थी। जिसके बीच में बड़े – बड़े स्पेस थे, जिनसे की आरपार दीखता था। तो हुआ यू कि, अशोक की माँ वहां नहाने के बाद बैठ जाती। क्योंकि घर में अकेले होती थी। तो नीचे सिर्फ पेटीकोट और ऊपर ब्लाउज में और एक दुपट्टा ले लेती थी।
( ऐसा प्रदीप ने मुझे बताया था चैट पर)। उस कुछ एक्साइट हुआ, प्रदीप की जिन्दगी में। वो वहीँ सीढियों पर बैठ कर फ्रूट खा रहा था और अशोक की माँ को दिखा नहीं और वो नहाने के बाद वहां बैठ गयी और दिन होने की वजह से, जब प्रदीप ने मुड़कर देखा, तो वो दंग रह गया।
आंटी के साथ उसने चाय पी, ना चाहते हुए भी। इस तरह से उसकी दोस्ती आंटी के साथ हुई। फिर अशोक अपने बाप के साथ वापस आ गया। अब प्रदीप हमेशा आता – जाता रहता था। वो एक फॅमिली मेम्बर की तरह हो गया था।
वो सबको खुश रखता था। रेंट भी जल्दी नहीं मांगता था और हमेशा ही मस्ती और मजाक के मूड में रहता था। फिर होली आ गयी और अब कुछ नया होने वाला था। जोकि प्रदीप के दिमाग में चल रहा था बहुत दिनों से।
उसने सोचा, पहले होली खेल ली जाए, तो उसने २ दिन पहले ही आंटी आई नहा कर बैठने के लिए, प्रदीप ने आंटी पर रंग डाल दिया। रंग बहुत था।
उसने बालो पर रंग डाला, जोकि सुखा हुआ था। वो प्रॉपर रंग नहीं था। अबीर था। जिसको बड़े ऐज के लोग खेलते है। तो उसने बहुत सारा रंग आंटी पर डाला और वो उसको रोकते हुए अन्दर की तरह भागी।
तो प्रदीप ने पीछे से उनको पकड़कर रंग डाल दिया और उसमे उसने बूब्स और कमर तक छु लिया था। अब आंटी बहुत गुस्सा थी, उसने गुस्सा किया, कि ये क्या तरीका है। मैं तुमसे कितनी बड़ी हु। ऐसे होली नहीं खेलते बड़े लोगो के साथ।
तो प्रदीप ने कहा – यहाँ तो ऐसे ही खेलते है। फिर वो हैप्पी होली कह कर चला गया, कि ज्यादा देर रहेगा, तो आंटी गुस्सा हो जायेगी। नेक्स्ट डे उसने फिर रंग हाथ लेकर दरवाजे पर सामने से आ गया। आंटी फिर डर गयी, कि ये रंग लगा देगा।
क्योंकि आंटी उस ऐज में प्रदीप का सामना नहीं कर सकती थी ताकत से तो। फिर उसने उसे प्यार से समझाया, कि वो कल तो खेला ही था। आज क्यों? तो प्रदीप ने कल वाली हरकत के लिए सॉरी बोला और कहा – आज वो प्यार से रंग लगाएगा नार्मल से।
तो आंटी मान गयी, क्योंकि प्रदीप ने सॉरी बोला था। पर प्रदीप ने बोला, कि आप उस तरफ फेस करो। तब ठीक से लग पायेगा। नहीं तो सामने से हाथ फेस नहीं सही लगेंगे। उसने आंटी प्लीज प्लीज कह कर मना लिया। जब आंटी टर्न हुई।
प्रदीप ने एकदम से मौके का फायदा उठाया और प्रदीप ने सिर्फ लोअर पहना हुआ था। आंटी ने पेटीकोट तो। फिर प्रदीप ने आंटी का फेस थोड़ा पकड़ा। जिस से वो काँप गयी और पीछे गयी और आंटी की गांड प्रदीप के लौड़े से टकरा गयी।
उसको उसका लौड़ा महसूस हुआ, तो फिर वो आगे बड़ी और प्रदीप ने छोड़ दिया उसको और थैंक यू बोला। उसने कहा – कि आप मेरे साथ होली खेली।। थैंक यू और कहा – आप को बुरा तो नहीं लगा, मेरी किसी बात का? आंटी के पास कोई जवाब नहीं था। क्या कहती? उसने ना में सिर हिला दिया।
फिर नेक्स्ट अशोक सब को लेकर अपने गाँव चले गया और सबसे अच्छी बात ये हुई, कि आंटी ने रंग वाली बात अपने घर में किसी को नहीं बोली थी। जिस से प्रदीप को अंदाजा हो गया, कि आगे बात बन सकती थी।
फिर अशोक वापस आ गया और सब भी। पर उसकी माँ नहीं आई। बेचारा प्रदीप बहुत ही दुखी हुआ और उसने पूछा, तो अशोक ने बताया, कि घर पर बड़ी दीदी की तबियत सही नहीं है। वो कुछ दिनों बाद वापस आएगी।
आफ्टर ८ डेज आंटी वापस आ आगयी और साथ उसकी एक लड़की भी थी १७ साल की। अब प्रदीप उसकी कजिन के जाने का इंतज़ार कर रहा था। पर प्रदीप की नीयत उस पर भी ख़राब थी। वो उन दोनों पर बराबर ध्यान देता था। ४थ डे उसकी कजिन वापस चली गयी और फिर प्रदीप ने आंटी को चोदने की कोशिश शुरू कर दी।
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